5000 स्कूलों के विलय पर भड़के छात्र नेता, लखनऊ में एनएसयूआई का बड़ा प्रदर्शन
Editor : Shubham awasthi | 01 July, 2025
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य, अपनी शिक्षा प्रणाली को लेकर हमेशा से चर्चा में रहा है। हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 5000 से अधिक प्राइमरी और उच्च प्राइमरी स्कूलों को मर्ज करने के फैसले ने राज्य में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है।

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इस फैसले का उद्देश्य कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को समीपवर्ती स्कूलों में मिलाकर संसाधनों का बेहतर उपयोग करना बताया गया है। हालांकि, इस कदम ने न केवल शिक्षकों और अभिभावकों में असंतोष पैदा किया है, बल्कि विपक्षी दलों और छात्र संगठनों को भी सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई), जो कांग्रेस पार्टी का छात्र संगठन है, ने इस फैसले के खिलाफ लखनऊ में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने जून 2025 में एक आदेश जारी किया, जिसमें प्रदेश के 5000 से अधिक प्राइमरी और उच्च प्राइमरी स्कूलों को मर्ज करने की घोषणा की गई। बेसिक शिक्षा विभाग के अनुसार, यह निर्णय उन स्कूलों को लक्षित करता है जहां छात्रों की संख्या 50 से कम है। सरकार का तर्क है कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को चलाना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है, और मर्जर से संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा। इसके अतिरिक्त, सरकार का दावा है कि इससे शिक्षकों की कमी को भी दूर किया जा सकेगा, क्योंकि मर्ज किए गए स्कूलों में शिक्षकों का समायोजन किया जाएगा। हालांकि, इस फैसले ने कई सवाल खड़े किए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की दूरी बढ़ने से बच्चों, विशेषकर गरीब और मजदूर वर्ग के बच्चों, को स्कूल पहुंचने में कठिनाई होगी। साथ ही, मर्जर के बाद शिक्षकों की नौकरियों पर अनिश्चितता का खतरा मंडरा रहा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देने की दिशा में एक छिपा हुआ प्रयास हो सकता है।
एनएसयूआई के अलावा, समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), और अन्य विपक्षी दलों ने भी इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। सपा मजदूर सभा के जिलाध्यक्ष राम कुमार यादव ने एक ज्ञापन में कहा कि यह फैसला गरीब और मजदूर वर्ग के बच्चों को शिक्षा से वंचित करेगा। प्रतापगढ़ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पैदल मार्च निकाला, जबकि रायबरेली में प्राथमिक शिक्षक संघ ने विरोध प्रदर्शन किया। शिक्षक संगठनों ने भी इस फैसले का विरोध किया है। उनका कहना है कि मर्जर से न केवल शिक्षकों की नौकरियां खतरे में पड़ेंगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। लखनऊ में ही 445 स्कूलों को मर्ज करने की योजना है, जिससे शिक्षकों और अभिभावकों में भारी असंतोष है।
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की दूरी पहले से ही एक बड़ी समस्या है। मर्जर के बाद बच्चों को 5-10 किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ सकती है, जो विशेष रूप से लड़कियों और छोटे बच्चों के लिए मुश्किल होगा। इससे ड्रॉपआउट दर बढ़ने की आशंका है। मर्जर के बाद शिक्षकों का समायोजन एक बड़ा सवाल है। कई शिक्षकों को डर है कि उनकी नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि समायोजन की प्रक्रिया कैसे होगी और क्या सभी शिक्षकों को नई नियुक्तियां मिलेंगी।
विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि यह फैसला निजी स्कूलों को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम है। सरकारी स्कूलों की संख्या कम होने से अभिभावकों को निजी स्कूलों की ओर रुख करना पड़ सकता है, जो गरीब परिवारों के लिए महंगा साबित होगा।
शिक्षा का अभाव सामाजिक और आर्थिक असमानता को बढ़ा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा ही वह साधन है जो गरीब बच्चों को बेहतर भविष्य की उम्मीद देता है। स्कूलों का मर्जर इस अवसर को सीमित कर सकता है।