Latest

शशि थरूर को दरकिनार करना क्या यह कांग्रेस की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक बन सकती है|

Editor : Anjali Mishra | 25 May, 2025

महागठबंधन बनाम NDA की सियासी बिसात कैसी बिछ रही है?और कांग्रेस के भीतर एक नई हलचल |

शशि थरूर को दरकिनार करना क्या यह कांग्रेस की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक बन सकती है|

Source or Copyright Disclaimer


ऑपरेशन सिंदूर के बाद भले ही भारत ने सैन्य मोर्चे पर पाकिस्तान को जवाब दे दिया हो, लेकिन नैरेटिव की जंग में क्या हम कुछ कदम पीछे रह गए हैं?दूसरी तरफ, बिहार में चुनावी रणभेरी बज चुकी है।

नीतीश कुमार की अगली रणनीति क्या होगी?

महागठबंधन बनाम NDA की सियासी बिसात कैसी बिछ रही है?और कांग्रेस के भीतर एक नई हलचल क्या आलाकमान अपने ही नेताओं से नाराज़ है?

शशि थरूर को दरकिनार करना क्या यह कांग्रेस की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक बन सकती है|


पाकिस्तान पर मिसाइलें बरसाकर भारत ने दुनिया को कड़ा संदेश दे दिया। लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर क्या हम पीछे रह गए?ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने तुरंत अपना नैरेटिव गढ़ना शुरू कर दिया। संयुक्त राष्ट्र से लेकर इस्लामिक देशों तक, PAK ने प्रोपेगैंडा फैलाने की हर कोशिश की।

सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने की योजना बनाई मगर यहीं पर शुरू हो गई राजनीति।क्या शशि थरूर जैसे अनुभवी नेता का नाम ना लिया जाना, भारत की डिप्लोमैटिक ताकत को कमजोर कर रहा है?

और कांग्रेस द्वारा ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल खड़े करना|


क्या पार्टी खुद ही अपने नैशनल स्टैंड से डगमगा रही है?सूत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान G-23 गुट के कुछ बागी नेताओं को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किए जाने से नाखुश था।शशि थरूर, जो कि वैश्विक मंचों पर भारत की मज़बूत आवाज़ माने जाते हैं, उनका नाम तक नहीं लिया गया।क्या यह व्यक्तिगत राजनीतिक असहमति, राष्ट्रीय हितों से बड़ी हो गई?क्या कांग्रेस के भीतर का यह मतभेद, विपक्ष को नुकसान पहुंचा सकता है?अब बात बिहार की जहां NDA और महागठबंधन के बीच चुनावी शतरंज की बिसात बिछ चुकी है।नीतीश कुमार की भूमिका को लेकर अब तक जो सवाल थे, उनका जवाब अब धीरे-धीरे साफ़ होता दिख रहा है।सूत्र के अनुसार नीतीश अब फिर से अपने "PDA" यानी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक फॉर्मूले को धार देने की कोशिश में हैं।उधर, तेजस्वी यादव सोशल इंजीनियरिंग और रोजगार के मुद्दों को केंद्र में रखकर वोटर खींचने की तैयारी में हैं।


लेकिन सस्पेंस यहां खत्म नहीं होता है।चुनावी गणित को समझने वाले प्रशांत किशोर अब खुद एक पार्टी के साथ मैदान में हैं।'जन सुराज' के नाम पर PK की पार्टी क्या तीसरी ताकत बन पाएगी?क्या PK सिर्फ रणनीतिकार ही नहीं, अब किंगमेकर भी साबित होंगे?महागठबंधन और NDA दोनों ही उनकी रणनीति से सतर्क हैं।

ऑपरेशन सिंदूर जैसी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आम तौर पर विपक्ष सरकार के साथ खड़ा होता है, लेकिन इस बार कांग्रेस समेत कुछ दलों ने जिस तरह सवाल उठाए, उसने राजनीतिक विमर्श को और उलझा दिया। सवाल ये है कि क्या राजनीतिक मतभेद इतने गहरे हो चुके हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर भी सर्वसम्मति बनाना नामुमकिन हो गया है? यह स्थिति न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की एकता को प्रभावित करती है, बल्कि घरेलू राजनीति में भी भ्रम की स्थिति पैदा करती है।बिहार चुनाव की बात करें तो इस बार युवा वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। रोजगार, शिक्षा और माइग्रेशन जैसे मुद्दों पर युवा वर्ग अब ज्यादा मुखर हो रहा है। तेजस्वी यादव भले ही इन मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन NDA और PK की जनसुनवाइयों में भी युवाओं की उपस्थिति साफ बताती है कि मतदाता अब जाति से ज्यादा नीति पर ध्यान दे रहा है। सवाल यह भी है कि क्या कोई दल इन मुद्दों को गंभीरता से उठाकर युवा वर्ग को स्थायी रूप से जोड़ पाएगा?शशि थरूर को प्रतिनिधिमंडल में शामिल न करना एक राजनैतिक चूक के साथ-साथ एक डिप्लोमैटिक अवसर की भी क्षति हो सकती है।


अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार, संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व प्रतिनिधि और विदेश मामलों पर स्पष्ट सोच रखने वाले थरूर की मौजूदगी दुनिया के सामने भारत की बात और प्रभावशाली ढंग से रख सकती थी। क्या कांग्रेस आलाकमान ने आंतरिक राजनीति को राष्ट्रीय कूटनीति पर भारी कर दिया?पाकिस्तान भले ही प्रोपेगैंडा फैला रहा हो, लेकिन उसकी साख पहले ही संदिग्ध है। बावजूद इसके, भारत को चाहिए कि वह न सिर्फ सैन्य स्तर पर, बल्कि सूचना युद्ध के स्तर पर भी आक्रामक रुख अपनाए। विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया भर से काम नहीं चलेगा। थिंक टैंक, पूर्व राजनयिक और मीडिया सबको मिलकर एक सशक्त नैरेटिव तैयार करना होगा ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझ आ सके कि भारत एक जिम्मेदार शक्ति है, और उसका सैन्य एक्शन आत्मरक्षा का हिस्सा था।बिहार की राजनीति अब दो ध्रुवों तक सीमित नहीं रह गई है। प्रशांत किशोर का जन सुराज मॉडल पारंपरिक जातीय समीकरण को तोड़ने की कोशिश है। वह पंचायत स्तर तक संवाद और समाधान पर जोर दे रहे हैं, जिससे ग्रामीण मतदाता आकर्षित हो सकता है। अगर यह मॉडल सफल होता है तो यह न सिर्फ बिहार बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक नया चुनावी फार्मूला बन सकता है। मगर सवाल ये है कि क्या जनता पुराने भरोसे को तोड़कर नए प्रयोग को गले लगाएगी?


तो सवाल अब यही है भारत की सैन्य कार्रवाई क्या कूटनीतिक रूप से भी उतनी ही प्रभावशाली बन पाई?कांग्रेस और G-23 की लड़ाई से विपक्ष को क्या नुकसान होगा?और बिहार में क्या PK की एंट्री बदल देगी पूरा समीकरण?