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सपा के बागी विधायकों पर चला अखिलेश यादव का हंटर पार्टी से बाहर किया

Editor : Shubham awasthi | 23 June, 2025

भारतीय राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति रही है। इसकी स्थापना मुलायम सिंह यादव ने की थी, और वर्तमान में इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं। सपा की विचारधारा सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) समुदायों के उत्थान पर आधारित रही है।

सपा के बागी विधायकों पर चला अखिलेश यादव का हंटर पार्टी से बाहर किया

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हाल के वर्षों में पार्टी को कई आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिनमें से एक बड़ा मुद्दा पार्टी के भीतर बगावत और अनुशासनहीनता रहा है। फरवरी 2024 में हुए राज्यसभा चुनाव में सपा के सात विधायकों द्वारा पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने का मामला इसका ताजा उदाहरण है। इस घटना ने सपा के भीतर और बाहर सियासी हलचल मचा दी।  23 जून 2025 को, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मामले में बड़ा कदम उठाते हुए तीन बागी विधायकों—अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज कुमार पांडेय—को पार्टी से निष्कासित कर दिया। हालांकि, बाकी चार विधायकों—पूजा पाल, विनोद चतुर्वेदी, राकेश पांडेय और आशुतोष मौर्य—पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस कदम ने कई सवाल खड़े किए हैं: क्या यह अखिलेश की रणनीति का हिस्सा है, या फिर मजबूरी? क्या यह सपा की विचारधारा को मजबूत करने का प्रयास है,या फिर सियासी नुकसान को कम करने की कोशिश?

फरवरी 2024 में उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 10 सीटों के लिए चुनाव हुए। इस दौरान सपा के पास विधानसभा में 108 विधायक थे, जो उसे तीन सीटें जीतने की स्थिति में ला सकते थे। सपा ने अपने तीन उम्मीदवार—जया बच्चन, आलोक रंजन और रामजी लाल सुमन—को मैदान में उतारा। दूसरी ओर, भाजपा ने आठ उम्मीदवार उतारे, जिनमें से सात सीटें उसके पास पहले से पक्की थीं, लेकिन आठवीं सीट के लिए उसे अतिरिक्त वोटों की जरूरत थी। 

चुनाव के दौरान सपा के सात विधायकों ने पार्टी के निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की। इन विधायकों में अभय सिंह (गोसाईगंज), राकेश प्रताप सिंह (गौरीगंज), मनोज कुमार पांडेय (ऊंचाहार), पूजा पाल, विनोद चतुर्वेदी, राकेश पांडेय और आशुतोष मौर्य शामिल थे। इस बगावत का परिणाम यह हुआ कि सपा के उम्मीदवारों को अपेक्षित वोट नहीं मिले, और भाजपा ने अपनी आठवीं सीट भी हासिल कर ली।


लगभग डेढ़ साल बाद, 23 जून 2025 को, अखिलेश यादव ने इस बगावत के लिए जिम्मेदार सात विधायकों में से तीन—अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज कुमार पांडेय—को पार्टी से निष्कासित कर दिया। सपा ने इन विधायकों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों और समाजवादी विचारधारा के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया। पार्टी का कहना था कि इन विधायकों ने न केवल क्रॉस वोटिंग की, बल्कि लगातार पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) विरोधी गतिविधियों में भी हिस्सा लिया। 

अभय सिंह: गोसाईगंज (अयोध्या) से विधायक अभय सिंह लंबे समय से सपा के प्रभावशाली नेता रहे हैं। हालांकि, उनकी भाजपा के साथ नजदीकियां और क्रॉस वोटिंग ने उनके खिलाफ कार्रवाई को अपरिहार्य बना दिया।


राकेश प्रताप सिंह: गौरीगंज (अमेठी) से विधायक राकेश प्रताप सिंह भी सपा के पुराने नेता हैं। उनकी बगावत ने अमेठी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में सपा की साख को नुकसान पहुंचाया।


मनोज कुमार पांडेय: ऊंचाहार (रायबरेली) से विधायक मनोज पांडेय ने न केवल क्रॉस वोटिंग की, बल्कि पार्टी के खिलाफ खुलकर बयानबाजी भी की थी।

चार विधायकों को क्यों छोड़ा गया?

सवाल यह है कि जब सात विधायकों ने एक ही तरह की बगावत की, तो बाकी चार—पूजा पाल, विनोद चतुर्वेदी, राकेश पांडेय और आशुतोष मौर्य—पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इस पर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ इसे अखिलेश की रणनीति मान रहे हैं, तो कुछ इसे उनकी मजबूरी

सपा ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि इन चार विधायकों को उनकी “पीडीए के प्रति बढ़ती आस्था” के आधार पर छोड़ा गया है। इसका मतलब यह हो सकता है कि इन विधायकों ने हाल के समय में पार्टी की विचारधारा के अनुरूप काम किया या फिर अपनी गलती के लिए माफी मांगी। हालांकि, इस दावे पर कई सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि क्रॉस वोटिंग जैसे गंभीर मामले में केवल “आस्था” के आधार पर छूट देना सपा कार्यकर्ताओं के लिए असमंजस पैदा कर सकता है।

क्षेत्रीय प्रभाव और समीकरण: इन चार विधायकों का अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभाव है। पूजा पाल (चायल, कौशांबी) एक प्रभावशाली महिला नेता हैं, जिनका पिछड़ा वर्ग में अच्छा आधार है। विनोद चतुर्वेदी, राकेश पांडेय और आशुतोष मौर्य भी अपने क्षेत्रों में मजबूत पकड़ रखते हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई से सपा को स्थानीय स्तर पर नुकसान हो सकता था। अखिलेश ने शायद इस जोखिम से बचने की कोशिश की


 कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश ने इन चार विधायकों को इसलिए छोड़ा, क्योंकि उनकी सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष के पास जाने में जोखिम था। अगर विधानसभा अध्यक्ष ने इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की, तो सपा की किरकिरी हो सकती थी। साथ ही, इन विधायकों को पार्टी में रखकर अखिलेश भविष्य में उन्हें नियंत्रित करने की रणनीति पर काम कर सकते हैं। 


भाजपा के साथ साठगांठ की अटकलें: कुछ विपक्षी नेताओं और सोशल मीडिया पर यह भी चर्चा है कि इन चार विधायकों को छोड़ने के पीछे सपा और भाजपा के बीच कोई “अंडरस्टैंडिंग” हो सकती है। हालांकि, इसकी कोई ठोस पुष्टि नहीं है, और यह केवल सियासी कयासबाजी का हिस्सा है।