आईपीएस राजीव कृष्ण: उत्तर प्रदेश के नए डीजीपी
Editor : Shubham awasthi | 01 June, 2025
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा राज्य, अपनी विशाल जनसंख्या और जटिल सामाजिक-राजनीतिक संरचना के कारण हमेशा से चर्चा का केंद्र रहा है

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इस राज्य की कानून व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी एक ऐसी चुनौती है, जो न केवल प्रशासनिक कुशलता बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण और नेतृत्व क्षमता की मांग करती है। 31 मई 2025 को, योगी आदित्यनाथ सरकार ने 1991 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राजीव कृष्ण को उत्तर प्रदेश का नया कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त करने का आदेश जारी किया। यह नियुक्ति पूर्व डीजीपी प्रशांत कुमार की सेवानिवृत्ति के बाद हुई, जिनका कार्यकाल 31 मई 2025 को समाप्त हो गया। इस नियुक्ति ने न केवल पुलिस महकमे में एक नया अध्याय शुरू किया है,
राजीव कृष्ण, 1991 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी, का जन्म 20 जून 1969 को नोएडा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि प्रभावशाली है; उन्होंने आईआईटी रुड़की से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने यूपीएससी की कठिन परीक्षा पास कर भारतीय पुलिस सेवा में प्रवेश किया। उनकी पत्नी एक भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी हैं, जो उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में एक संतुलित और प्रेरणादायक सहयोगी रही हैं।
राजीव कृष्ण का करियर तीन दशकों से अधिक समय तक फैला हुआ है, जिसमें उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। उनकी छवि एक ईमानदार, नवाचार-प्रिय और तकनीक-प्रधान पुलिस अधिकारी की रही है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई जिलों जैसे फिरोजाबाद, इटावा, मथुरा, फतेहगढ़, बुलंदशहर, नोएडा, आगरा, लखनऊ और बरेली में पुलिस अधीक्षक (एसपी) और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के रूप में सेवा दी है। इसके अलावा, उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के अध्यक्ष और सतर्कता निदेशालय के महानिदेशक जैसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर भी कार्य किया है।
राजीव कृष्ण की नियुक्ति के पीछे सबसे बड़ा कारण उनकी उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में शानदार उपलब्धियां हैं। पिछले साल, उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में पेपर लीक के कारण रद्द कर दी गई थी, जिससे राज्य सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठे थे। उस समय भर्ती बोर्ड की महानिदेशक रेणुका मिश्रा को हटा दिया गया था। राजीव कृष्ण ने इस जिम्मेदारी को संभाला और 60,000 से अधिक पुलिसकर्मियों की भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और सफलतापूर्वक पूरा किया। इस उपलब्धि ने न केवल उनकी प्रशासनिक क्षमता को उजागर किया, बल्कि सरकार का भरोसा भी जीता।
इसके अतिरिक्त, राजीव कृष्ण ने 2007 में उत्तर प्रदेश में नवगठित आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के पहले उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने आतंकवाद से निपटने में अपनी रणनीतिक क्षमता का परिचय दिया। उनकी अगुवाई में एटीएस ने कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरे किए।
2004 में आगरा में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के रूप में, राजीव कृष्ण ने कुख्यात अपहरण गिरोहों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की। उन्होंने बीहड़ों में सक्रिय अपराधियों को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी रणनीतियां बनाईं, जिससे क्षेत्र में शांति स्थापित करने में मदद मिली। इसके अलावा, आगरा जोन के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) के रूप में, उन्होंने 'ऑपरेशन पहचान' शुरू किया, जो एक मोबाइल-आधारित मंच था, जिसका उद्देश्य बार-बार अपराध करने वालों की पहचान और निगरानी करना था।
उन्होंने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में महानिरीक्षक (ऑपरेशंस) के रूप में भी सेवा दी, जहां उन्होंने संवेदनशील सीमाओं पर निगरानी और परिचालन प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए सेंसर-आधारित व्यापक और एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली लागू की। लखनऊ जोन के एडीजी के रूप में, उन्होंने मध्य उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण कानून व्यवस्था की स्थिति को संभाला।
उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने चुनौतियां
उत्तर प्रदेश पुलिस देश की सबसे बड़ी पुलिस फोर्स है, जिसमें लाखों कर्मचारी कार्यरत हैं। इस विशाल संगठन का नेतृत्व करना अपने आप में एक जटिल कार्य है। राजीव कृष्ण के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
कानून व्यवस्था का पुनर्स्थापन: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने राजीव कृष्ण की नियुक्ति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था ठीक नहीं है। उन्होंने डीजीपी के सामने 'सर्वसमाज' को राहत देने और अपराध नियंत्रण की चुनौती को रेखांकित किया। उत्तर प्रदेश में जातीय, सांप्रदायिक और राजनीतिक तनावों के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति अक्सर जटिल हो जाती है।
स्थायी डीजीपी की नियुक्ति: समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि स्थायी डीजीपी की नियुक्ति न होने से प्रशासनिक स्थिरता प्रभावित होती है। राजीव कृष्ण के सामने यह चुनौती होगी कि वे अपने कार्यकाल में इस धारणा को बदलें।
केंद्र-राज्य तनाव: कुछ खबरों के अनुसार, डीजीपी की नियुक्ति को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच मतभेद हैं। अखिलेश यादव ने इसे 'दिल्ली-लखनऊ की लड़ाई' करार दिया और कहा कि इसका खामियाजा प्रदेश की जनता और कानून व्यवस्था को भुगतना पड़ रहा है। राजीव कृष्ण को इस तनाव के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।
योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2017 में सत्ता में आने के बाद से कानून व्यवस्था को अपनी प्राथमिकता बताया है। सरकार ने संगठित अपराध, माफिया और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की नीति अपनाई है। हाल ही में, 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत भारतीय सेना द्वारा आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई के बाद, योगी सरकार ने पूरे राज्य में रेड अलर्ट जारी किया था। इस दौरान डीजीपी को नागरिकों की सुरक्षा और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की रक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए थे।
नवंबर 2024 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने 'पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश चयन और नियुक्ति नियम, 2024' लागू किए, जिसके तहत डीजीपी की नियुक्ति के लिए एक समिति का गठन किया गया। इस समिति में मुख्य सचिव, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) का एक नामित सदस्य, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उनका नामित सदस्य, गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और एक सेवानिवृत्त डीजीपी शामिल हैं। यह समिति उम्मीदवारों का मूल्यांकन उनकी सेवा रिकॉर्ड, अनुभव और कम से कम छह महीने की शेष सेवा के आधार पर करती है। नियुक्त डीजीपी को दो वर्ष का निश्चित कार्यकाल या सेवानिवृत्ति तक, जो भी पहले हो, सेवा देनी होती है।