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नागा साधु कौन होते हैं? क्या खाते हैं? कहां रहते हैं? क्यों नहीं लगती है ठंड, जानें सबकुछ

Editor : 24 Adda Official Posted : 17 January, 2025

हर बार कुंभ हो या महाकुंभ नागा साधु हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नागा साधु कपड़ें क्यों नहीं पहनते हैं? इतनी कड़ाके की सर्दी में भी नागा साधुओं को ठंड क्यों नहीं लगती है? नागा साधु शरीर पर भभूत क्यों लगाते हैं? नागा साधु होते कौन हैं? ये क्या करते हैं?

नागा साधु  कौन होते हैं? क्या खाते हैं? कहां रहते हैं? क्यों नहीं लगती है ठंड, जानें सबकुछ

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हर बार कुंभ हो या महाकुंभ नागा साधु हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नागा साधु कपड़ें क्यों नहीं पहनते हैं? इतनी कड़ाके की सर्दी में भी नागा साधुओं को ठंड क्यों नहीं लगती है? नागा साधु शरीर पर भभूत क्यों लगाते हैं>? नागा साधु होते कौन हैं? ये क्या करते हैं? ऐसे तमाम सवाल आप सबके जेहन में जरूर होंगे। तो चलिए इस वीडियो में हम एक -एक करके आपके सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे। वीडियो अंत तक जरूर देखिएगा और शेयर भी करिएगा क्योंकि ये काफी जरूरी वीडियो होने वाला है। 


नागा शब्द का अर्थ होता है नग्न. नागा साधु आजीवन नग्न ही रहते हैं. ये खुद को भगवान शिव का दूत मानते हैं. नागा साधु अपने शरीर पर धुनी या भस्म लपेटकर रहते हैं. आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए केवल साधारण सैनिक नहीं, बल्कि वैदिक सैनिक तैयार किए. ऐसे सैनिकों का एक संगठन बनाया गया, जिनके पास धर्म के अलावा कोई और विरासत नहीं थी. उनके एक हाथ में वेद, गीता, उपनिषद और पुराण थे, तो दूसरे हाथ में भाला, तलवार और कृपाण आदि गुरु शंकराचार्य ने ऐसे साधु-सैनिकों का एक संगठन बनाया, जो साधु भी थे और सैनिक भी. इन्हें ज्ञान देना और प्राण लेना, दोनों का अभ्यास था. इन्हीं योद्धा साधुओं को उन्होंने 'नागा' नाम दिया.  


अब चलिए जानते हैं कि नागा साधु कपड़े क्यों नहीं पहनते हैं? दरअसल, नागा साधुओं का मानना है कि व्यक्ति दुनिया में नग्न आता है और यही प्राकृतिक अवस्था है। भौतिकता से दूर होकर चूंकि वे खुद को भगवान की भक्ति में लीन कर चुके होते हैं इसलिए वे कुछ भी भौतिक अपने शरीर पर धारण नहीं करते हैं। और इसलिए नागा साधु कभी कपड़े नहीं पहनते हैं और हमेशा निर्वस्त्र ही रहते हैं। 


अब चलिए बताते हैं कि आखिर नागा साधु शरीर पर भभूत क्यों लगाए रहते हैं। दरअसल, भभूत को आध्यात्मिक शुद्धता और सांसारिक मोह-माया से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। चूंकि नागा साधु सांसारिक मोह माया से दूर हो चुके होते हैं इसलिए वे शरीर पर भभूत लगाते हैं। 

अब जानते हैं कि आखिर नागा साधुओं को इतनी कड़ाके की ठंड में भी सर्दी क्यों नहीं लगती है? नागा साधु ठंड से बचने के लिए तीन प्रकार के योग करते हैं. कठोर तपस्या, सात्विक आहार, नाड़ी शोधन और अग्नि साधना के कारण नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती है. इसके अलावा वे अपने विचारों और खानपान पर भी संयम रखते हैं। इसका भी फायदा मिलता है। 


नागा साधु कितने प्रकार का श्रृंगार करते हैं, चलिए यह भी जान लीजिए। नागा साधउ 17 श्रृंगार करने में विश्वास रखते हैं, इनमें भभूत, चंदन, रुद्राक्ष माला, ड्डूल माला, डमरू, चिमटा और पैरों में कड़े मुख्य रूप से शामिल हैं. नागा साधु के ये सभी 17 श्रृंगार शिवभक्ति का ही प्रतीक हैं। 

अब चलिए जानते हैं कि नागा साधु बनते कैसे हैं, किसी भी व्यक्ति को नागा साधु बनने में 12 साल का समय लगता है. नागा साधु बनने से पहले कुंभ के दौरान उन्हें अपना पिंडदान करना पड़ता है, जिसका मतलब है कि वे अपने पिछले जीवन से मुक्ति पा लेते हैं। कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट का त्याग कर दिया जाता है, जिसके बाद वे हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं.


नागा साधुओं के बारे में यह दिलचस्प बातें भी जान लें--

नागा साधु दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं और वे भोजन भी भिक्षा मांग करते हैं. नागा साधु को दिन में 7 घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत है. अगर उन्हें किसी दिन इन 7 घरों से भिक्षा नहीं मिलती है, तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है. नागा साधु केवल सात्विक और शाकाहारी भोजन ही खाते हैं. नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या घर भी नहीं होता है. ये कहीं भी कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं. सोने के लिए भी नागा साधु किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि हमेशा जमीन पर सोते हैं. 


चलिए अंत में आपको बताते हैं कि आखिर कुंभ के बाद नागा साधु कहां चले जाते हैं और उनकी मृत्यु के बाद क्या किया जाता है?

 नागा साधु कुंभ के बाद अपने-अपने आखाड़ों में लौट जाते हैं। यहां लौटकर ये ध्यान, साधना और धार्मिक शिक्षाओं का अभ्यास करते हैं। कुछ नागा साधु काशी (वाराणसी), हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन या प्रयागराज जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर रहते हैं। वहीं, नागा साधुओं की मत्यु के बाद इनका दाह-संस्कार नहीं किया जाता है। इनके शव को या तो गंगा में सीधे प्रवाहित कर दिया जाता है या फिर इनकी समाधि बना दी जाती है।

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