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बिहार की राजनीति में एक नए बागी की दस्तक तेज प्रताप की निर्वासन कथा या सियासी पुनर्जन्म?

Editor : Anjali Mishra | 26 May, 2025

घर से निकले तेज प्रताप क्या बनाएंगे अपनी नई सियासी चौपाल?

बिहार की राजनीति में एक नए बागी की दस्तक तेज प्रताप की निर्वासन कथा या सियासी पुनर्जन्म?

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बिहार की राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं न रिश्ते, न सत्ता, और न ही वफादारी।

राष्ट्रीय जनता दल के भीतर एक ऐसा विस्फोट हुआ है, जिसने सत्ता गलियारों में खामोशी के बीच हलचल मचा दी है। लालू प्रसाद यादव, जिन्होंने राजनीति के कई रंग देखे, अब खुद अपने घर में एक राजनीतिक विद्रोह की पटकथा लिखने को मजबूर हो गए।

तेज प्रताप यादव, न सिर्फ उनके बड़े बेटे हैं, बल्कि एक समय में पार्टी के भावी नेता के रूप में देखे जाते थे। लेकिन अब वही तेज प्रताप राजद से छह साल के लिए निष्कासित कर दिए गए हैं और कारण? ‘पार्टी की गरिमा’,मगर ये सिर्फ गरिमा की बात नहीं।

ये एक ऐसी कहानी है जहां राजनीति, पारिवारिक संबंधों और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की परतें एक-एक कर खुल रही हैं।

क्या तेज प्रताप अब सन्यास लेंगे या सत्ता का नया रास्ता चुनेंगे?

क्या यह एक बागी की चुपचाप तैयारी है या महाभारत में अर्जुन के अकेले युद्ध की शुरुआत?


बिहार की राजनीति में भूचाल तब आया जब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। ये फैसला केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी गहरी हलचल पैदा करने वाला है। तेज प्रताप का यह निष्कासन आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से महज पांच महीने पहले हुआ है, जिसने राज्य की सियासत को गर्मा दिया है।लालू यादव ने तेज प्रताप को 'पार्टी की गरिमा' के उल्लंघन का दोषी ठहराया है, लेकिन इसके पीछे की सियासी कहानी कहीं ज्यादा गूढ़ है। लंबे समय से तेज प्रताप अपने बयानों, आचरण और गतिविधियों को लेकर पार्टी नेतृत्व के लिए परेशानी का सबब बने हुए थे। अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि पार्टी के भीतर उनकी समानांतर युवा टीम और अयोध्या, कृष्ण भक्ति जैसे मुद्दों पर उनका झुकाव, पारंपरिक राजद लाइन से मेल नहीं खा रहा था।


अब सबसे बड़ा सवाल क्या तेज प्रताप अब भी विधायक रहेंगे?

उत्तर है – हाँ, कम से कम फिलहाल तो।


दरअसल, भारतीय संविधान की दलबदल कानून की धारा 10 के तहत कोई भी विधायक तब अयोग्य घोषित होता है जब वह खुद पार्टी छोड़ता है या किसी और पार्टी में शामिल हो जाता है। लेकिन तेज प्रताप ने स्वेच्छा से पार्टी नहीं छोड़ी, बल्कि उन्हें निष्कासित किया गया है। इसलिए जब तक वे खुद कोई नया दल नहीं जॉइन करते, तब तक उनकी हसनपुर सीट सुरक्षित है।तेज प्रताप ने पहले ही महुआ विधानसभा सीट में रुचि दिखाई थी, जहां से फिलहाल राजद के मुकेश रोशन विधायक हैं। पार्टी से निकाले जाने के बाद तेज प्रताप यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ सकते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेज प्रताप अब दो रास्तों पर चल सकते हैं:-


आध्यात्मिकता की ओर झुकाव जैसा कि उन्होंने पहले भी किया है।

या फिर राजनीतिक बगावत एक नई पार्टी या युवा सेना के साथ।


तेज प्रताप यादव ने अपने राजनीतिक करियर में धीरे-धीरे एक अलग पहचान बनाने की कोशिश की है। उन्होंने राजद के भीतर "युवा सेना" जैसी संरचनाएं तैयार कीं और युवाओं को ट्रेनिंग देना शुरू किया। अगर वह बगावती रुख अपनाते हैं, तो संभव है कि यही युवा सेना भविष्य के चुनावों में उनके लिए शक्ति बने।

हालांकि, उनके निजी विवाद, विशेषकर तलाक का मामला, और पुराने घोटालों से जुड़ी खबरें, उनकी छवि को धूमिल करती रही हैं। इसी कारण भाजपा या जदयू जैसी पार्टियां फिलहाल उन्हें शामिल करने से बचना चाहेंगी।तेज प्रताप यादव की राजनीति में शुरुआत पारंपरिक ढर्रे पर भले ही हुई हो, लेकिन उनकी शैली शुरू से ही हटकर रही है। जहां उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव ने पार्टी में संगठनात्मक मजबूती और प्रशासनिक अनुभव की दिशा में काम किया, वहीं तेज प्रताप ने खुद को रंगमंच, धर्म, और प्रतीकों की राजनीति से जोड़ा। कभी कृष्ण का वेश धारण करना, तो कभी मथुरा जाकर पूजा-पाठ करना | यह उनकी छवि को एक आध्यात्मिक राजनेता की ओर मोड़ता रहा है। उनके इस अलग अंदाज़ ने उन्हें पार्टी के भीतर एक "गैरपारंपरिक" नेता के रूप में स्थापित किया, लेकिन इसी कारण से वे आलोचना के भी शिकार हुए।तेज प्रताप के निष्कासन से यह तो स्पष्ट है कि आगामी विधानसभा चुनावों में वह राजद के उम्मीदवार नहीं होंगे। लेकिन यदि वह स्वतंत्र रूप से मैदान में उतरते हैं, तो आरजेडी को नुकसान हो सकता है, विशेषकर उन सीटों पर जहां तेज प्रताप के समर्थक युवा वर्ग का वर्चस्व है।महुआ हो या हसनपुर किसी भी सीट से अगर तेज प्रताप निर्दलीय या अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन करके लड़ते हैं, तो वोट कटाव तय है, जिसका सीधा लाभ विपक्षी दलों को मिल सकता है।हालांकि तेज प्रताप को लेकर कई बार यह धारणा बनी कि वह गंभीर राजनीतिज्ञ नहीं हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी लोकप्रियता को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने युवाओं को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग किया | चाहे फेसबुक लाइव हो या इंस्टाग्राम रील्स। तेज प्रताप के भाषणों में भले ही प्रशासनिक दृष्टिकोण कम झलकता हो, लेकिन उनकी बोलचाल की भाषा और शैली आम लोगों से सीधा जुड़ाव बनाती है। यही कारण है कि पार्टी से निकाले जाने के बावजूद उनके समर्थकों में निराशा की जगह आक्रोश और एकजुटता देखने को मिल रही है।तेज प्रताप यादव को लालू परिवार और पार्टी से अलग किए जाने के बाद यह देखना रोचक होगा कि वे किन नए राजनीतिक समीकरणों की ओर बढ़ते हैं। छोटे दलों या स्थानीय नेताओं के साथ गठबंधन का विकल्प उनके लिए खुला है।


बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों का उभार पहले भी देखने को मिला है| चाहे पप्पू यादव हों या उपेन्द्र कुशवाहा। अगर तेज प्रताप अपनी "युवा सेना" को संगठित रखने में सफल रहते हैं और ज़मीनी काम जारी रखते हैं, तो वह भविष्य में किंगमेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं, खासकर त्रिकोणीय या चतुर्थांशीय मुकाबले की स्थिति में।तेज प्रताप यादव ने बीते कुछ वर्षों में अपने आपको केवल एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक व्यक्ति के तौर पर भी प्रस्तुत किया है। वृंदावन से लेकर मथुरा तक उनकी यात्राएं और धार्मिक आयोजनों में सक्रिय भागीदारी ने उन्हें राजनीति के साथ-साथ एक "धार्मिक जननेता" की पहचान भी दी है। ऐसे समय में जब कई युवा वोटर परंपरा और पहचान की राजनीति से प्रभावित होते हैं, तेज प्रताप की यह छवि उन्हें एक वैकल्पिक सामाजिक नेता के रूप में स्थापित कर सकती है। वे यदि इस पहचान को व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाते हैं, तो यह न सिर्फ उनकी राजनीतिक जमीन को बचाए रखेगा, बल्कि एक नया वोट बैंक भी बना सकता है।बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों से गहराई से जुड़ी है, और तेज प्रताप यादव एक मजबूत यादव नेता होने के नाते अब एक स्वतंत्र शक्ति बनने की स्थिति में हैं। अगर वे आने वाले समय में आरजेडी विरोधी वोटों को बांटते हैं या यादव समुदाय के भीतर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, तो यह तेजस्वी यादव के लिए भी एक सीधी चुनौती बन सकता है। हालांकि, तेज प्रताप को अब अपने राजनीतिक फैसलों में परिपक्वता दिखानी होगी और व्यक्तिगत विवादों से ऊपर उठकर एक गंभीर राजनीतिक विकल्प के रूप में खुद को पेश करना होगा। यह दौर उनके लिए एक अग्निपरीक्षा की तरह है जहां हर कदम या तो उन्हें मिटा सकता है या मजबूती से खड़ा कर सकता है।


तेज प्रताप यादव का निष्कासन केवल एक पारिवारिक या आंतरिक राजनीतिक मसला नहीं है यह बिहार की राजनीति में एक नई धुरी के उभरने की संभावनाओं का संकेत है। जहां एक ओर लालू परिवार की एकता पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर तेज प्रताप को लेकर नई सियासी गणनाएं शुरू हो गई हैं।

2025 के चुनाव से पहले अगर तेज प्रताप कोई नया मंच तैयार करते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में ‘राजनीतिक रामायण’ का एक नया अध्याय हो सकता है जहां बेटे को बनवास मिल गया है, पर वापसी के रास्ते अब भी खुले हैं।