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हाथ जोड़ने से जान नहीं बचती! पहलगाम हमले पर बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा के बयान ने देश को चौंकाया

Editor : Anjali Mishra | 25 May, 2025

बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा के बयान से मचा बवाल, शहीदों की पत्नियों को बताया ‘वीरता से खाली’

हाथ जोड़ने से जान नहीं बचती! पहलगाम हमले पर बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा के बयान ने देश को चौंकाया

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हाथ जोड़ने से जान नहीं बचती! पहलगाम आतंकी हमले पर बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा के इस बयान ने देश को चौंका दिया है। शहीदों की विधवाओं में ‘वीरता की कमी’ बताकर उन्होंने न सिर्फ दुखी परिवारों को आहत किया, बल्कि एक नई सियासी जंग की चिंगारी भी सुलगा दी है। आखिर क्यों एक जनप्रतिनिधि ने त्रासदी के बाद ऐसा बयान दिया, जो अब राष्ट्रीय बहस का कारण बन गया है?चलिए आपको बताते है इस विवाद के पीछे की पूरी सच्चाई | 


 बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा के बयान से मचा बवाल, शहीदों की पत्नियों को बताया ‘वीरता से खाली’

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले को लेकर बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा के बयान ने एक नई राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने न सिर्फ मारे गए पर्यटकों की प्रतिक्रिया पर सवाल उठाए, बल्कि शहीदों की पत्नियों की भावनाओं को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। विपक्ष से लेकर सोशल मीडिया तक, हर ओर इस बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।


22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम इलाके की बैसरन घाटी में वहशी आतंकवादियों ने 26 निर्दोष पर्यटकों की निर्मम हत्या कर दी। यह हमला उस समय हुआ जब ये लोग प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आए थे। पूरे देश को इस हमले ने झकझोर कर रख दिया। इस त्रासदी के बाद शोक की लहर दौड़ गई, लेकिन अब उसी घटना पर दिए गए एक बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई हलचल पैदा कर दी है।बीजेपी के राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान कहा अगर पर्यटकों ने आतंकवादियों के सामने हाथ न जोड़े होते, तो वे मारे नहीं जाते। हाथ जोड़ने से कोई नहीं छोड़ता, खासकर वे जो दया से कोसों दूर हैं।”उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नागरिकों को दी जा रही ‘सुरक्षा प्रशिक्षण’ का हवाला देते हुए दावा किया कि यदि पीड़ितों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण मिला होता, तो वे आतंकियों से मुकाबला कर सकते थे।अगर उनके पास जो भी हथियार ,डंडा, लाठी होता और वे चारों ओर से हमला करते, तो शायद पांच-छह लोग ही मारे जाते और आतंकवादियों का भी अंत हो जाता।


सांसद यहीं नहीं रुके

उन्होंने हमले में मारे गए पुरुषों की पत्नियों की प्रतिक्रिया पर भी टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा वीरांगनाओं जैसा जज्बा नहीं दिखा’

जो महिलाएं उस हमले में विधवा हुईं, यदि उन्होंने रानी अहिल्याबाई होलकर का इतिहास पढ़ा होता, तो वे अपने पति की रक्षा करते हुए शहीद हो जातीं। लेकिन उनमें वह वीरता, वो जोश, वो भाव नहीं था। वे हाथ जोड़ती रहीं और उनके पति मारे गए।”

सांसद जांगड़ा द्वारा शहीदों की पत्नियों के जज्बे पर की गई टिप्पणी भी व्यापक आलोचना का केंद्र बन गई है। भारत में वीरांगनाओं की परंपरा को लेकर गर्व की भावना है, लेकिन किसी महिला की पीड़ा और निजी क्षति के क्षण में यह अपेक्षा रखना कि वह "रणभूमि की रानी" की तरह प्रतिक्रिया दे, असंवेदनशीलता की श्रेणी में आता है। हर महिला की अपनी मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक स्थिति होती है जिसे नकारना, केवल इतिहास की तुलना में तौलना, उनके संघर्ष को नजरअंदाज करना है।जांगड़ा ने दावा किया कि देश में वीरता और संग्राम की परंपरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद दोबारा शुरू हुई है। उन्होंने कहा हमारा लक्ष्य है कि देश की हर नारी में रानी अहिल्याबाई जैसा साहस और आत्मबल जागे।


इस पर विपक्ष का पलटवार और जनता की नाराज़गी

इस बयान पर विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस नेता ने कहा ये बयान न केवल असंवेदनशील है, बल्कि शहीदों और उनके परिवारों का अपमान भी है। क्या सरकार सुरक्षा देने में नाकाम रही, अब उसका दोष भी पीड़ितों पर मढ़ा जाएगा?

सोशल मीडिया पर भी लोग जांगड़ा के बयान की निंदा कर रहे हैं। कई यूज़र्स ने सवाल उठाया कि जब प्रशिक्षित सैनिक आतंकवादियों का सामना करते हुए शहीद हो जाते हैं, तो आम नागरिकों से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे हथियारों से लैस आतंकियों से भिड़ें?इस पूरे बयान से एक गहरी बहस खड़ी हो गई है कि क्या आत्मरक्षा की उम्मीद हर नागरिक से की जा सकती है, खासकर जब वह आतंकवाद जैसे सशस्त्र खतरे का सामना कर रहा हो। देश में सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी आखिरकार राज्य की होती है| आम नागरिकों से यह अपेक्षा करना कि वे हथियारों से लैस आतंकियों से लड़ें, न केवल अव्यावहारिक है बल्कि उनके डर और असहायता को अनदेखा करने जैसा है। जब प्रशिक्षित सुरक्षा बल भी भारी हथियारों के सामने संघर्ष करते हैं, तो निहत्थे नागरिकों से युद्ध की उम्मीद कितनी न्यायसंगत है, यह गंभीर प्रश्न है।


रामचंद्र जांगड़ा का बयान एक तरफ बहादुरी और आत्मरक्षा के मुद्दे को उठाता है, वहीं दूसरी ओर इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या नेताओं को शोकग्रस्त परिवारों के प्रति अधिक संवेदनशील नहीं होना चाहिए

क्या राष्ट्रीय सुरक्षा की विफलता का बोझ नागरिकों के कंधों पर डालना जायज है?

इस पूरे प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकी हमलों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर की गई एक भी असावधानी, न सिर्फ राजनीतिक तूफान खड़ा कर सकती है, बल्कि पीड़ितों की भावनाओं को भी गहराई से आहत कर सकती है।अब राजनीतिक हलकों में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या यह बयान रामचंद्र जांगड़ा की व्यक्तिगत राय है या कहीं न कहीं यह पार्टी लाइन की ओर भी इशारा करता है? बीजेपी नेतृत्व की ओर से अब तक इस बयान पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है। अगर पार्टी इसे समर्थन देती है, तो उसे इसका राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां हाल के समय में आतंकी घटनाएं हुई हैं और लोग सुरक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। वहीं अगर पार्टी इससे दूरी बनाती है, तो यह स्पष्ट करना जरूरी होगा कि नेताओं के बयानों पर जवाबदेही कैसे तय की जाएगी।

मुद्दा केवल एक बयान का नहीं, बल्कि हमारे नेताओं की संवेदनशीलता और जवाबदेही का है।


रामचंद्र जांगड़ा के इस बयान पर सफाई दी जाएगी या पार्टी इससे किनारा करेगी, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। फिलहाल, बहस तेज हो चुकी है