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भारत की 'डिप्लोमैटिक स्ट्राइक' का चेहरा।नाम है शशि थरूर।

Editor : Anjali Mishra | 19 May, 2025

थरूर ने सरकार द्वारा दी गई इस जिम्मेदारी को गर्व और समर्पण से स्वीकार किया है।

भारत की 'डिप्लोमैटिक स्ट्राइक' का चेहरा।नाम है शशि थरूर।

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वो हमेशा शब्दों से खेलते थे, अब देश ने उन्हें मोर्चे पर उतार दिया है।

संयुक्त राष्ट्र से लेकर संसद तक जिनकी आवाज़ गूंजती थी, अब वही शख्स बन गया है भारत की 'डिप्लोमैटिक स्ट्राइक' का चेहरा।नाम है शशि थरूर।

सरकार ने उन्हें दी एक ऐसी जिम्मेदारी जिस पर उनकी ही पार्टी ने खड़े कर दिए सवाल।

क्या थरूर देश के साथ खड़े हैं या पार्टी से दूर हो चले हैं?साथ ही कहानी में ट्विस्ट है, साज़िशें हैं और एक मिशन पाकिस्तान को बेनकाब करने का।


ऑपरेशन सिंदूर के बाद अब भारत की कूटनीतिक स्ट्राइक।भारत ने आतंक के खिलाफ अपने सख्त रुख को सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं रखा है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के बाद अब भारत ने पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर बेनकाब करने की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार ने एक हाई-प्रोफाइल संसदीय प्रतिनिधिमंडल का गठन किया है, जिसमें विपक्ष के बड़े चेहरे भी शामिल किए गए हैं। सबसे चर्चित नाम है कांग्रेस सांसद डॉ. शशि थरूर का, जिन्हें एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

शशि थरूर ने जताया सरकार का आभार, कहा ‘यह मेरे लिए सम्मान की बात है।थरूर ने सरकार द्वारा दी गई इस जिम्मेदारी को गर्व और समर्पण से स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि चाहे संयुक्त राष्ट्र में हो या कांग्रेस पार्टी में, हर भूमिका उन्होंने निष्ठा से निभाई है और इस बार भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने यह भी साफ किया कि वह पार्टी के विचारों का सम्मान करते हैं, लेकिन जब देशहित की बात हो, तो व्यक्तिगत निष्ठा सर्वोपरि होती है। "यह जिम्मेदारी मेरे लिए सम्मान की बात है," थरूर ने कहा, "ऐसे समय में राष्ट्र की सेवा करने का अवसर मिलना गौरव की बात है।"

हालांकि थरूर की नियुक्ति पर उनकी पार्टी में ही मतभेद उभर आए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सरकार पर सीधा हमला बोला है। उनका आरोप है कि सरकार ने कांग्रेस से चार नाम मांगे थे, लेकिन मनमानी करते हुए सिर्फ एक नाम स्वीकार किया। वो भी पार्टी से बिना सलाह लिए। रमेश ने इसे “बेईमानी” करार देते हुए कहा कि कांग्रेस अब अपने सुझाए गए नामों को नहीं बदलेगी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार ने पहले ही फैसला कर लिया था और विपक्ष की राय महज औपचारिकता बन कर रह गई।

अब सवाल उठता है कि क्या थरूर पार्टी लाइन से अलग जा रहे हैं?


शशि थरूर का नाम हमेशा से एक सशक्त और स्वतंत्र राजनीतिक आवाज के रूप में जाना जाता रहा है। चाहे यूएन में भारत की छवि गढ़ने की बात हो या संसद में विदेश नीति पर चर्चाएं, थरूर की दक्षता को हर पक्ष ने सराहा है। अब जब केंद्र सरकार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल में नेतृत्व की भूमिका दी है, तो यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या यह थरूर के राजनीतिक कद को और ऊंचा करेगा, और क्या इससे कांग्रेस में उनके लिए नई राह खुल सकती है? पार्टी के भीतर ही उन्हें लेकर अलग-अलग सुर हैं। कुछ नेता जहां इसे “डिसिप्लिन की अनदेखी” मानते हैं, वहीं कुछ इसे ‘राजनीति से ऊपर उठने की मिसाल’ कह रहे हैं।शशि थरूर के बयान और कांग्रेस के एतराज ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी है क्या थरूर पार्टी की लाइन से अलग रुख ले रहे हैं? हालांकि थरूर ने स्पष्ट किया कि उन्होंने संसदीय मामलों के मंत्री को पहले ही फोन कॉल की जानकारी पार्टी को दी थी और उन्हें विश्वास था कि सरकार विपक्ष से संवाद करेगी। उनका जोर था कि आतंक जैसे मुद्दों पर देश को एकजुट होना चाहिए और यह समय ‘दलीय राजनीति’ से ऊपर उठने का है।


सोशल मीडिया ट्रेंड्स इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि जनता इस पूरे घटनाक्रम को 'राजनीति के बजाय राष्ट्रहित' की नजर से देख रही है। कई लोगों का मानना है कि जब देश आतंक के खिलाफ लड़ रहा हो, तब राजनीतिक दलों को एक सुर में बोलना चाहिए। खासकर युवा वर्ग शशि थरूर की भूमिका को एक सकारात्मक कदम मान रहा है, और उन्हें ‘भारत के ग्लोबल फेस’ के तौर पर देखता है। वहीं कुछ समर्थक कांग्रेस नेतृत्व से भी अपेक्षा कर रहे हैं कि वह व्यक्तिगत असहमति को सार्वजनिक मंच पर लाने से बचें।


साथ ही अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत ने नई चाल दी है।भारत ने अब यह तय कर लिया है कि वह पाकिस्तान को सिर्फ LOC पर जवाब नहीं देगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी घेरने से पीछे नहीं हटेगा। अमेरिका, यूरोप, खाड़ी देशों और एशियाई पड़ोसियों के समक्ष यह प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान की भूमिका को तथ्यों और प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करेगा। शशि थरूर जैसे अनुभवी वक्ता की मौजूदगी से भारत की दलील और भी प्रभावशाली होगी। कूटनीतिक हलकों का मानना है कि भारत की यह रणनीति पाकिस्तान को अलग-थलग करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।


थरूर की भूमिका पर विदेशी मीडिया की नजर है साथ ही अमेरिकी और ब्रिटिश मीडिया ने भी इस घटनाक्रम पर खास ध्यान दिया है। थरूर की नियुक्ति को 'बाइपार्टीज़न डिप्लोमेसी' यानी द्विदलीय कूटनीतिक प्रयास कहा जा रहा है, जो एक परिपक्व लोकतंत्र का संकेत है। कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने माना है कि भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में जब विपक्ष सरकार के साथ विदेश नीति पर एकजुट होता है, तो इससे दुनिया में उसकी स्थिति और मजबूत होती है। यह एक ऐसा संकेत है जिसे पश्चिमी देश काफी गंभीरता से लेते हैं। खासकर तब जब मामला आतंकवाद और वैश्विक सुरक्षा से जुड़ा हो।


केंद्र सरकार के इस निर्णय ने विपक्ष के समक्ष एक नैतिक चुनौती खड़ी कर दी है। क्या वे राष्ट्रीय संकट के समय दलगत राजनीति से ऊपर उठकर साथ खड़े हो सकते हैं? आतंकवाद जैसे मुद्दे पर जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को समर्थन जुटाने की आवश्यकता है, तब क्या विपक्ष आपसी मतभेदों को दरकिनार कर सकता है? यह प्रतिनिधिमंडल न सिर्फ भारत की विदेश नीति का विस्तार है, बल्कि घरेलू राजनीति के लिए भी एक लिटमस टेस्ट बन चुका है। आने वाले दिनों में विपक्ष की प्रतिक्रियाएं यह तय करेंगी कि वह इस चुनौती को किस रूप में लेता है।

अवसर या विवाद?