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शिक्षक दिवस पर प्रो. डी.पी. मिश्रा : उत्तर-दक्षिण भारत की ज्ञान परंपरा को जोड़ने का आह्वान

Editor : Shubham awasthi | 08 September, 2025

हैदराबाद में शिक्षक दिवस का उत्सव गरिमा और श्रद्धा के साथ मनाया गया, जहाँ शिक्षा, संस्कृति और राजनीति का संगम एक अविस्मरणीय आयोजन में देखने को मिला। यह कार्यक्रम रामालयम फ़ाउंडेशन और मातृदेवो भव सत्संग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया

शिक्षक दिवस पर प्रो. डी.पी. मिश्रा : उत्तर-दक्षिण भारत की ज्ञान परंपरा को जोड़ने का आह्वान

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इसका संयोजन भारतीय प्रजा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. बी. श्रीधर ने किया। यह आयोजन कांग्रेस की वरिष्ठ नेता, पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की सदस्य रहीं लक्ष्मी देवी की स्मृति को समर्पित था।

इस अवसर पर शिक्षकों, विद्वानों और राजनीतिक नेताओं की विविध उपस्थिति ने इस तथ्य को और मज़बूत किया कि शिक्षक राष्ट्र निर्माण के आधार स्तंभ हैं और भारत की सांस्कृतिक एकता के सूत्रधार भी।


समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. देव प्रकाश मिश्र, अध्यक्ष, रामालयम फ़ाउंडेशन, दिल्ली रहे। अपने उद्बोधन में प्रो. मिश्र ने शिक्षा को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा – “भारत का मूल स्वरूप सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता है। शिक्षक केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि करुणा, सत्य और एकता के मूल्य भी संचारित करें। शिक्षा तभी सार्थक है जब उसमें चरित्र निर्माण और जीवन-मूल्य भी समाहित हों।” उनके विचारों का उपस्थित जनसमूह ने जोरदार तालियों से स्वागत किया।


समारोह की गरिमा बढ़ाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं पिछड़ा वर्ग के भी नेता उपस्थित रहे। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री रामचंद्र राव और ओ बी सी नेता श्री कृष्णमोहन राव ने प्रो. मिश्र का हार्दिक स्वागत किया और समाज में शिक्षकों के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि प्राचीन गुरुकुल परंपरा से लेकर आधुनिक कक्षाओं तक, शिक्षक ही सदैव पीढ़ियों को दिशा देने वाले रहे हैं।


कार्यक्रम के संयोजक मातृदेवोभव प्रमुख के. बी. श्रीधर ने अपने संबोधन में इस आयोजन के दोहरे उद्देश्य को रेखांकित किया – शिक्षकों की निस्वार्थ सेवाओं का सम्मान करना और साथ ही लक्ष्मी देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करना, जिनका राजनीतिक जीवन शिक्षा और सामाजिक कल्याण के प्रति समर्पण से चिह्नित रहा। उन्होंने कहा कि उनकी स्मृति इस दिन को और अधिक प्रेरणादायी बनाती है।


कार्यक्रम में तेलंगाना के कई शिक्षकों को उनके समर्पित शैक्षिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और भजन-कीर्तन ने समारोह में आध्यात्मिकता का रंग घोल दिया।


समारोह का समापन “विविधता में एकता” के संकल्प के साथ हुआ, जिसमें शिक्षकों को केवल ज्ञान के संरक्षक ही नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर के संवाहक के रूप में भी सम्मानित किया गया। नेताओं ने यह भी रेखांकित किया कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के साझा योगदान ने राष्ट्र की सामाजिक एकता को मज़बूत किया है, जिससे सद्भाव और आपसी सम्मान की परंपरा को बल मिला है।